शरपूंखा (प्लीहा शत्रु ) – सामान्य पारिचय एवं औषध उपयोग


शरपूंखा / Tephrosia purpurea pers

शरपुन्खा सर्वत्र भारत में पाया जाता है | यह मटर के प्रजाति का पौधा है जो क्षुप रूप में 1 से 3 फुट तक ऊँचा होता है | यह प्लीहा रोग की उत्तम औषधि है इसलिए इसे प्लीहा शत्रु भी कहते है | इसे सरफोंका(हिंदी) , शरपुन्खा (संस्कृत), बननिल (बंगाली), उन्हाली (मराठी), मासा ( राजस्थानी), शर्पन्खो ( गुजरती) , कटामारी (मलयालम) आदि नामों से जाना जाता है | इसके पते 3″ से 6″ लम्बे और विषमपक्षवत होते है , जिन्हें तोड़ने पर इनके तंतु तिरछे आकृति में रहते है, ऊपर से चिकने और निचे रोमश होते है |

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शरपुन्खा के पुष्प बैंगनी रंग के होते है जो 3 से 6 इंच लम्बी पुष्पमंजरी में लगते है | इसकी फली मटर की फली की तरह ही होती है लेकिन साइज़ में थोड़ी छोटी होती है ये 1 से 2 इंच लम्बी एवं 1/5 इंच चौड़ी होती है |

शरपुन्खा का रासायनिक संगठन 

शरापुन्खा की पतियों में नाइट्रोजन और पोटेशियम प्रचुर मात्रा में होता है | इसके आलावा इसमें रूटीन और रोटेनोइड नमक तत्व भी प़ुए जाते है , राल , मोम, क्लोरोफिल , एल्ब्यूमिन और रंजक द्रव्य भी इसमें मिलते है | फली में उपस्थित बीजो से तेल निकलता है |

शरपुन्खा के गुणधर्म 

इसका रस तिक्त और कषाय , पचने पर गुण – लघु , रुक्ष और तीक्षण , यह उष्ण वीर्य और प्लिह्घ्न विपाक के गुण धर्मो से युक्त होता है |

शरपुन्खा के रोग प्रभाव  

शरपुन्खा मुख्य रूप से पाचन संस्थान पर अपना प्रभाव डालता है जिससे यह यकृत और प्लीहा रोग में अति गुणकारी औषधि साबित होता है | इसके आलावा यह कफवातशामक , शोथहर, रक्तशोधक , दीपन , पाचक  विषहर, हृदय रोग, अस्थमा, गुर्दा रोग, ज्वर आदि में उपयोगी  है |

शरपुन्खा प्रयोज्य अंग 

औषध उपयोग में शरपुन्खा का पूरा पौधा ही काम में आता है अर्थात इसका पंचाग औषध उपयोगी होता है |

शरपुन्खा की सेवन विधि और मात्रा 

इसके पंचांग का चूर्ण – 3 से 6 ग्राम ,  स्वरस – 10 से 20 ml और अगर क्षार हो तो  – 1 से 3 ग्राम ले वे |

शरपुन्खा के स्वास्थ्य लाभ 

  • यकृत के रोग में शरपुन्खा के पुरे पौधे को जड़ समेत उखाड़ ले और इसे धोकर सुखा दे | सूखने के बाद इसके पंचांग को 10 ग्राम की मात्रा में लेकर 200 ml पानी में डालकर उबाले , जब पानी 1/4 भाग       बचे तो इसे ठंडा करके सेवन करे | नियमित सेवन से यकृत के सभी रोगों में चमत्कारिक लाभ मिलेगा |
  • प्लीहा वृद्धि में शरापूंखा के काढ़े को नियमित सेवन करने से बढे हुए प्लीहा में आराम आता है | प्लीहा वृद्धि में आप शरपुन्खा की जड़ को मठे ( छाछ ) के साथ घिस कर ले सकते है | यह भी उत्तम परिणाम देता है |
  • मलेरिया बुखार में शरपुन्खा के क्वाथ के साथ , गिलोय को मिलाकर दिन में दो बार सेवन करने से मलेरिया के बुखार में आराम आता है |
  • कफज रोगों में आप 5 ग्राम शरपुन्खा के साथ तुलसी के पते और थोडा सा सोंठ का चूर्ण मिलकर इनका काढ़ा बना ले | नियमित सुबह के समय सेवन करे | कफ के सभी विकारो में जल्दी ही आराम मिलेगा |
  • चर्म रोगों में शरपुन्खा के साथ नीम की पतियाँ मिलाकर कर क्वाथ तैयार करे और इससे प्रभावित त्वचा को धोवे | 
  • महिलाओ के अनियमित माहवारी की समस्या में शरपुन्खा के काढ़े को ग्रहण कर सकती | इसके सेवन से अनियमित माहवारी की समस्या से छुटकारा मिलता है |
  • शरीर पर कंही चोट लगने से कोई घाव बन जावे तो शरपुन्खा की जड़ को कुचल कर इसको प्रभवित स्थान पर बांध दे , घाव जल्दी भरेगा |
  • शरापुन्खा अच्छा शोथहर भी है | सुजन वाली जगह इसके कल्प को बांधने से सुजन जल्दी उतर जाती है |
  • दांतों में कीड़े लगे हो तो शरपुन्खा का रस निकाल ले और इससे कवल धारण करे | जल्द ही कीड़ो की समस्या में आराम मिलेगा और दांतों के अन्य रोगों में भी फायदा होगा |

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